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“फुल प्लेट बनाम साढ़े सात रुपया का बेबस द्वंद्व”… किसने नीतीश सरकार को बताया साढ़ेसाती सरकार ?….

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नीतीश कुमार के खिलाफ विज्ञापन के जरिए खुद को 2020 की मुख्यमंत्री कैंडिडेट घोषित करने वाली पुष्पम प्रिया चौधरी ने एक बार फिर नीतीश कुमार को कठघरे में खड़ा किया है…

..पुष्पम प्रिया चौधरी ने कोरोना को लेकर बिहार में आंगनबाड़ी केंद्रों की बंदी के दौरान मीड डे मिल के लिए मिलने वाले पैसे को लेकर सवाल खड़ा किया है… उन्होंने कहा है कि बच्चों के एकाउंट में मिलने वाले पैसे मात्र 7.50 रुपए हैं, इसमें कौन सा पौष्टिक आहार मिलता है…साथ ही उन्होंने तुलनात्मक रूप में साफ प्लेट के बराबर पैसा करार दिया है…

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पुष्पम प्रिया चौधरी ने ये तमाम बातें चंद मिनटों पहले फेसबुक पर लिखकर सरकार पर निशाना साधा है…और उन्होंने क्या कुछ कहा, पढ़िए पूरी रिपोर्ट:-

“समस्या क्या है? मूल समस्या यह है कि नीति-निर्माण में समझ की कमी है और 15 साल के तथाकथित सुशासन में संस्थाओं के निर्माण पर कोई काम नहीं हुआ है। अब स्कूल में भोजन की योजना इस देश की ही योजना तो है नहीं। दुनियाँ के अनेक मुल्कों में प्रतिदिन करोड़ों बच्चे इस योजना का लाभ उठाते हैं और नाश्ता, खाना या दोनों प्राप्त करते हैं।दूसरे देशों में यह योजना बहुत ही प्रोफेशनल तरीक़े से स्थानीय संस्थाओं की सहायता से चलाई जाती है। जैसे ट्यूनीशिया जैसे देश में स्थानीय युवाओं को रोज़गार देते हुए केटरिंग के काम में लगाया जाता है।

विकसित देशों में तो और बड़ी एजेन्सियाँ होती हैं।भारत में भी केरल जैसे राज्यों में अभिनव प्रयोग हुए हैं, जहाँ आज यह व्यवस्था है कि सरकार खाना घर ही भिजवा देगी। लेकिन बिहार में शिक्षकों को ही काम में झोंक दिया गया है। बेरोज़गारी से त्रस्त युवाओं को इस माध्यम से भी रोज़गार दिया जा सकता था लेकिन हर योजना को जैसे-तैसे ऐडहॉक तरीक़े से चलाने की आदत हो गई है और इसी को पॉलिसी निर्माण समझा दिया गया है।

हमने जो विश्वस्तरीय संस्थानों में पॉलिसी निर्माण सीखा है वह ऐसी कामचलाऊ ख़ानापूर्ति से नहीं बल्कि सिद्धांतों, साक्ष्यों और लाभार्थियों की ज़रूरतों पर आधारित होती है। यह इस राज्य में कभी हुआ ही नहीं और हम अपने डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की वह बात भी भूल गए हैं कि जो बात सिद्धांत में सही नहीं है, वह व्यवहार में कभी सही नहीं हो सकती। और इसलिए विपदा की स्थिति में हम इस तरह के हास्यास्पद और असंवेदनशील तौर-तरीक़े अपनाते हैं।

पुनश्च: कुछ लोग शायद पूछ रहे हैं कि इस स्थिति में मैं रहती तो क्या करती! आप निश्चिंत रहें, मैं रहूँगी तो ऐसी नौबत ही नहीं आएगी। अगर आप एक संवेदनशील सरकार हैं और आपने ठोस काम किया है, सक्षम संस्थाओं का निर्माण किया है, तो कितनी भी बड़ी विपदा हो, आप हमेशा तैयार होते हैं।”

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