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“ICU” में बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था…7 दिनों तक इलाज के लिए भटकता रहा मरीज… तड़प-तड़प कर अस्पताल में एक प्रोफेसर ने तोड़ा दम,सुध लेने नहीं आए एक भी सीनियर डॉक्टर…दरभंगा आलाधिकारी से भी नहीं मिली किसी तरह की मदद – परिजन…

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बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था कितनी लापरवाह हो चुकी है इसकी बानगी इस खबर में देखिए कि किस तरह से एक साधन संपन्न व्यक्ति भी अपनी जान नहीं बचा पाया. अगर आप भ्रष्ट व्यवस्था के शिकार हो जाए तो तमाम तरह की सुविधाएं रहने के बावजूद आप को जान से हाथ धोना पड़ सकता है..

कोरोना का भय दिखाकर सामान्य बीमारियों का इलाज भी बिहार के सरकारी व गैरकी सरकारी अस्पतालों में बंद है. लोग मर रहे हैं तड़प रहे हैं पर उनके दुख दर्द को देखने वाला कोई नहीं..

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यह हम नहीं कह रहे हैं यह कह रही है जैन कॉलेज मधुबनी के जूलॉजी के हेड रह चुके मृतक उमेश चंद्रा की पुत्री रंजना कर्ण उचं.

द्राजी की कल इलाज के अभाव में मौत हो गई. उमेश चंद्रा के परिजन विगत एक सप्ताह से उन्हें लेकर दरभंगा के करीब सभी हॉस्पिटलों का चक्कर लगा चुके थे.. कोरोना जांच नहीं होने के कारण कोई भी हॉस्पिटल में एडमिट करने को तैयार नहीं था..

दरभंगा के चर्चित पारस हॉस्पिटल में भी उनके परिजनों को धक्के मार कर निकाल दिया गया. उनकी पुत्री रंजना कहती है कि पिछले शुक्रवार को प्रोफ़ेसर उमेश चंद्र जी की तबीयत खराब हुई थी उन्हें दरभंगा के डीएमसीएच हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था जहां चिकित्सकों द्वारा उन्हें टाइफाइड शिकायत बताई गई थी तथा कोरोना जांच कराने को कहा गया था सरकारी हॉस्पिटल में कई दिन इंतजार के बाद जब कोरोना जांच नहीं हुआ तो परिजन उन्हें लेकर अपने घर वापस आ गए घर पर प्राइवेट लाल पैथोलैब के द्वारा जांच कराई गई जिसकी रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है..

इसी बीच उनकी स्थिति खराब होने पर उन्हें लेकर परिजन दरभंगा के पारस हॉस्पिटल गए पर काफी आरजू मिनत करने के बावजूद भी उन्हें एडमिट नहीं किया गया.. अस्पताल प्रबंधन द्वारा कहा गया कि पहले कोरोना जांच की रिपोर्ट लाइए. थक हार कर उन्हें वापस घर लाया गया यहां स्थिति बेहद खराब होने पर बीती रात उन्हें डीएमसीएच दरभंगा में भर्ती कराया गया. जहां डा यू सी झा के वार्ड में भर्ती थे..

ना कोई चिकित्सक इन्हें देखने आया ना कोई नर्स आई आक्सीजन चढ़ाने की स्थिति थी.. नर्सों ने कहा कि सरकार ने उन्हें पीपीई किट नहीं दिया है.. वह किसी भी हाल में मरीज के पास नहीं आ सकती हैं.. मरीज तड़पता रहा और उसकी 17 जुलाई को दिन में मौत हो गई…

उनकी पुत्री रंजना ने बिहार नाउ से एक्सक्लूसिव बातचीत में  रो पड़ी.. उन्होंने कहा कि हॉस्पिटल के अंदर जानवरों की तरह मरीजों को रखा गया था कोई किसी को देखने सुनने वाला नहीं था थक हार कर दूसरे मरीज के अटेंडेंट द्वारा बताए जाने पर उन्होंने खुद पिता को ऑक्सीजन किट लगाई..

इस बीच परिजन स्वास्थ्य महकमे के कई वरीय पदाधिकारियों को फोन लगाते रहे पर कहीं से कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला व ईलाज के आभाव मे उनके पिता की मौत हो गई..

मौत के बाद भी अस्पताल प्रबंधन ने कोई जांच नहीं करवाया और परिजनों को सौंप दिया 17 जुलाई को ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया..

उनकी पुत्री कहती है कि इस बीच दरभंगा के आयुक्त व कई वरीय पदाधिकारियों से उन लोगों ने संपर्क साधा मदद की गुहार लगाई और किसी ने कोई मदद नहीं की. इस घटना ने पूरे मिथिलांचल इलाके को शोक में डुबो दिया है उनके चाहने वाले लोग अंदर से आक्रोशित हैं साथ ही साथ भ्रष्ट व्यवस्था को कोस भी रहे हैं पर क्या व्यवस्था को कोसने से प्रोफ़ेसर साहब वापस आ सकते हैं क्या जिस तरह की पूरी की पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था बिहार में चल रही है ऐसे में फिर कोई व्यक्ति इसी तरह अपनी जान न गवा दी इसकी गारंटी कौन लेगा ?…

ब्यूरो रिपोर्ट, बिहार नाउ, दरभंगा

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