इस वक्त की बड़ी खबर बिहार में शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर और शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक के बीच तनातनी बढ़ गई है .. शिक्षा मंत्री के आप्त सचिव डॉक्टर केके यादव के द्वारा जारी किए गए पत्र के जवाब में शिक्षा विभाग के निदेशक प्रशासन सुबोध कुमार चौधरी ने पत्र जारी करते हुए मंत्री के आप्त सचिव डॉ. के के यादव को विभाग में एंट्री पर रोक लगा दी है.. साथ ही उनकी सेवा समाप्त कर दी गई है…
सुबोध कुमार चौधरी ने पत्र में लिखा है कि डॉ० कृष्णा नन्द यादव मा० मंत्री के आप्त सचिव, शिक्षा विभाग, बिहार सरकार
निदेशानुसार, पिछले एक सप्ताह में आपके द्वारा भाँति-भाँति के पीत-पत्रों में भीति-नीति के निदेश विभाग और विभागीय पदाधिकारियों को भेजे गये हैं। इस संबंध में आपको आगाह किया गया था कि आप आप्त सचिव (बाह्य) तौर पर है। अतः आपको नियमतः सरकारी अधिकारियों से सीधे पत्राचार नहीं करना चाहिए।
किन्तु आपके लगातार जारी अनर्गल पीत-पत्रों और अविवेकपूर्ण बातों से यह पता चलता है कि आपको माननीय मंत्री के प्रकोष्ठ में अब कोई काम नहीं है और आप व्यर्थ के पत्र लिखकर विभाग के पदाधिकारियों का समय नष्ट कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि आपकी सेवाएं लौटाने के लिए सक्षम प्राधिकार को विभाग पहले ही लिख चुका है। विभाग द्वारा यह भी निर्देशित किया गया है कि अब आप शिक्षा विभाग के कार्यालय में भौतिक रूप से प्रवेश नहीं कर सकते हैं विभाग को यह भी पता चला है कि आप विभाग पर मुकदमा कर चुके हैं, जिसके कारण आपकी सेवा सामंजन का प्रस्ताव विभाग द्वारा काफी समय से लगातार खारिज किया जाता रहा है। अतः आप स्वयं एक माननीय विभागीय मंत्री के प्रकोष्ठ में काम करने के लायक नहीं है। इन्हीं कारणों से सक्षम प्राधिकार को आपको हटाने के लिए पत्र लिखा जा चुका है।
आपसे अनुरोध है कि आप स्वयं या अपने सरक्षकों (जिनके कहने पर ये तथाकथित पीत पत्र लिख रहे हैं पूरी प्रक्रियाओं से अवगत हो लें और उसके बाद ही किसी प्रकार का पत्राचार करें। व्यर्थ का पत्राधार करने से आपका और आपके संरक्षकों की कुत्सित मानसिकता एवं अकर्मण्यता जाहिर होती है। विभागीय पदाधिकारियों के लिए संभव नहीं है कि ये आपके हर प्रकार के पत्रों का बार-बार उत्तर देते रहे।
विभाग में यह भी निदेश निर्गत कर दिया गया है कि आपके द्वारा लिखे गये पत्र / पीत-पत्र तुरंत लौटा दिये जाए आपको पुन आगाह किया जाता है कि आप व्यर्थ का पत्राचार न करें और अपने नाम के आगे जो डॉ० लगाते हैं, उसका सबूत दें कि क्या आप वाकई किसी उच्च शिक्षण संस्थान में प्राध्यापक रह चुके हैं ?