बड़ी खबर दरभंगा से आ रही है जहां धरती के भगवान माने जाने वाले देश के प्रख्यात डॉक्टर मोहन मिश्रा का निधन हो गया है.. जानकारी के मुताबिक, दरभंगा के लहेरियासराय बंगाली टोली स्थित आवास पर उन्होंने अंतिम सांसें ली.. गुरुवार देर रात हृदय गति रुकने से उनकी निधन हुई है.. पद्मश्री डॉक्टर मोहन मिश्रा के निधन की खबर आग की तरह फैली.. इसके बाद पूरे इसके में शोक की लहर दौड़ गई…डॉक्टर मोहन मिश्रा न सिर्फ भारत, बल्कि विश्व स्तर पर ख्याति प्राप्त डॉक्टर थे..
डॉक्टर मोहन मिश्रा के बेटे डॉक्टर उद्भट मिश्रा ने बिहार नाउ से बात करते हुए बताया कि डॉक्टर मोहन मिश्रा की मौत हार्ट अटैक से हुई है.. पिछले तीन दिनों से वो गंभीर रूप से बीमार थे जिसके बाद गुरुवार देर रात उन्होंने अंतिम सांसें ली.. उनकी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव थी..
डॉक्टर मोहन मिश्रा की क्या थी पहचान …
डॉक्टर मोहन मिश्रा विश्व स्तर के ख्याति प्राप्त फिजिशियन डॉक्टर थे.. उन्होंने कई विषयों व बीमारियों पर शोध किए थे.. जिसके बाद उनको पद्मश्री से भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ने किया था..
विश्व में डिमेंशिया यानी भूलने की बीमारी पर प्रभावी और सर्वमान्य रिसर्च नहीं हो सका था…दरभंगा के डॉ. मोहन मिश्र ने ब्राह्मी नामक पौधे से इस बीमारी के इलाज में सफलता पाई थी..उनके इस रिसर्च को ब्रिटिश जर्नल में जगह दी गई थी। उन्हें कालाजार पर शोध के लिए 2014 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया..दरभंगा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पीटल (डीएमसीएच) में मेडिसीन विभाग के एचओडी रहे डॉ. मोहन मिश्र वर्ष 1995 में सेवानिवृत्त हुए।
इसके बाद वे बंगाली टोला स्थित घर पर मरीजों को देखने लगे। इस दौरान उनके पास डिमेंशिया के कई मरीज आते थे। इसकी कोई सटीक दवा नहीं होने के चलते बहुत फायदा नहीं होता था। उनका ध्यान आयुर्वेद की तरफ गया तो ब्राह्मी के पौधे की विशेषता की जानकारी हुई। इस विषय में काफी जानकारी जुटाई। आयुर्वेद के कई चिकित्सकों से बात की। फिर इस पौधे से डिमेंशिया के इलाज पर रिसर्च का निर्णय लिया।
प्राइवेट क्लीनिक चलाने वाले डॉ. अजय कुमार मिश्र व डॉ. उदभट मिश्र के साथ जून 2015 से मई 2016 तक 12 मरीजों पर रिसर्च किया। सभी को ब्राह्मी से निर्मित दवा प्रतिदिन दो बार लगातार तीन माह तक दी गई। सभी पर बेहतर परिणाम सामने आया। यह शोध वल्र्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन में पंजीकृत हुआ है। यह रिसर्च वैज्ञानिकों व शोधकर्ताओं के प्रोफेशनल नेटवर्क ‘रिसर्च गेट’ पर भी उपलब्ध है। इसे लंदन के ‘फ्यूचर हेल्थकेयर जर्नल’ ने भी प्रकाशित किया..
इस शोध को वे 25 व 26 जून 2018 को लंदन के रॉयल कॉलेज ऑफ फिजिशियन के इनोवेशन इन मेडिसीन सम्मेलन में प्रस्तुत कर चुके हैं।