मैथिली भाषा-साहित्य का मूल खोजते विद्वान त्रेतायुग से इस भाषा का उद्गम मानते हैं और माता जानकी-हनुमान संवाद (वाल्मीकि रामायण) से प्रमाण देते हैं। वर्तमान समय में मैथिली साहित्य का इतिहास १००० वर्ष के लिखित प्रमाण के साथ समस्त उत्तर भारतीय भाषाओं में संस्कृत के बाद सबसे समृद्ध, सुसंस्कृत और पुराना है।
जब भारतवर्ष में नवीन शिक्षा व्यवस्था की बुनियाद पड़ी और मात्र कुछ विश्वविद्यालय बने तो बीसवीं सदी के दूसरे दशक में कलकत्ता विवि में मैथिली भाषा की पढाई आरम्भ हो गई थी। पटना विश्वविद्यालय बनने के बाद कुछ अवरोध आए किन्तु मैथिली भाषा की पढाई वहाँ भी होने लगी।
सम्प्रति दर्जनाधिक विवि में मैथिली भाषा की पढाई होती है लेकिन प्राथमिक स्तर पर इस भाषा में पढाई न तब होती थी और न अब होती है।आजाद भारत के संविधान में मातृभाषा माध्यम से शिक्षा की व्यवस्था को मौलिक अधिकार की श्रेणी में रखा गया है लेकिन बिहार सरकार कभी भी इसको लेकर गंभीर नहीं हुई और रोड़ा बनकर इस मुद्दे को बरगलाती रही। अनेकानेक मैथिली अभियानियों ने सामाजिक राजनीतिक मंच पर अनवरत प्रयत्न किया। इन सब स्तिथि को देखते हुए स्व०डॉ जयकान्त मिश्र ने पटना हाईकोर्ट में बिहार सरकार पर मुकदमा दायर किया और १९९८ई०में विजयी हुए ।
बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील किया लेकिन २००३ में मैथिली संविधान के आठवें अनुसूची में अधिसूचित हो गई और बिहार सरकार ने अपील वापस ले लिया लेकिन स्थिति यथावत रही। २०१९ ई० में बिहार सरकार की इस मनमानी के विरूद्ध नीरज कुमार झा और नन्द कुमार ने पुनः पटना हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर
किया । हाल ही में हाइकोर्ट ने बिहार सरकार के मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर १७-७-२३ को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर जबाब देने के लिए कहा है कि २५ वर्ष बीतने के बाद भी सरकार ने उचित कदम क्यों नहीं लिया और मैथिली में शिक्षा हेतु क्या किया ?