‘मिस टीआरपी’ भारतीय पत्रकारिता, विशेष रूप से टीवी पत्रकारिता पर हास्य-व्यंग की शैली में लिखी गयी एक ऐसी किताब है जो पत्रकारिता के अन्दर आने वाली विकृतियों पर सवाल उठाती है। पत्रकारिता के चेहरे को बदनुमा बनाने वाली कुछ ऐसी बातें, जो वर्तमान में पत्रकारिता की परम्परा बनती जा रही हैं, इस किताब में उन्ही बातों को कहानी का आधार बनाया गया है। टीवी चैनलों के पत्रकार किस तरह से टीआरपी के पीछे अपनी मौलिक पहचान खोते जा रहे हैं या मीडिया के अन्दर चापलूसी और प्रपंच जैसी बुराइयाँ किस कदर बढ़ती जा रही हैं, इन बातों को इस किताब में हास्य-व्यंग के जरिए बखूबी चित्रित किया गया है..
इस किताब के लेखक अवनीन्द्र झा खुद पत्रकार है और उन्होने कई मीडिया संस्थानों में काम किया है। लिहाजा पत्रकारों के काम करने की शैली, उनकी सोच, उनके काम करने के अन्दाज उनकी आशा-निराशा और मीडिया हाउस के माहौल का बारीक चित्रण किया है।
सन्मति प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस किताब में 132 पृष्ठ एवं 18 कहानियाँ हैं। किताब का कवर काफी आकर्षक है और पाठकों को अपनी ओर खींचता है।