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RJD प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे ने थामा जेडीयू का दामन…कहा – पिता से राजनीतिक मतभेद, परिवारिक नहीं…

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पटनाः बिहार में मुख्य विपक्षी दल आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के घर में ही विद्रोह हो गया है. जगदानंद सिंह के छोटे बेटे इंजीनियर अजीत सिंह लालू प्रसाद यादव की जगह नीतीश कुमार को विश्वास में लेते हुए आज जदयू में शामिल हो गये. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा ने जगदानंद सिंह के छोटे बेटे को अपनी पार्टी में शामिल कराया. जो आरजेडी के लिए एक तरह से बड़ा झटका है.
इससे पहले 9 अप्रैल को जेडीयू में शामिल होने का ऐलान करते हुए अजीत सिंह ने कहा था कि वो बचपन से ही सीएम नीतीश कुमार के कामकाज को देख रहे हैं और उनसे काफी प्रभावित हैं. इसलिए बिना शर्त जेडीयू में शामिल हो रहे हैं. साथ ही कहा कि जेडीयू समाजवादियों की पार्टी है और मेरा मानना है कि मुझे आरजेडी से ज्यादा जदयू में सिखने का मौका मिलेगा. अजित ने ये भी कहा था कि मेरे पिताजी जगदानंद सिंह ने मुझे राजनीतिक फैसला लेने की आजादी दी है. मेरे फैसले से उनके परिवार के रिश्तों पर कोई असर नहीं पड़ेगा.बता दें कि जगदानंद सिंह के छोटे बेटे से पहले बड़े बेटे सुधाकर भी बगावत कर चुके हैं. हालांकि अभी वो आरजेडी के रामगढ़ से विधायक हैं. जगदानंद सिंह के बड़े बेटे सुधाकर सिंह 2010 में बगावत कर चुके हैं. हालांकि उस समय आरजेडी के तरफ से टिकट देने पर सहमति भी बन गई थी. लेकिन जगदानंद सिंह तैयार नहीं हुए और सुधाकर सिंह को बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बना लिया लेकिन चुनाव में जगदानंद सिंह ने अपने बेटे के खिलाफ जमकर प्रचार किए और सुधाकर चुनाव भी हार गए.1 बजे दिन में मिलन समारोह का आयोजनः फिलहाल सुधाकर सिंह आरजेडी के विधायक हैं. लेकिन परिवार में एक बार फिर से बगावत हो रही है और जगदानंद सिंह के छोटे पुत्र अजीत सिंह अपने समर्थकों के साथ जदयू में आज शामिल हो गए हैं. कार्यक्रम में ललन सिंह, जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा समेत पार्टी के कई बड़े लीडर मौजूद थे.

आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के चार बेटे हैं. दिवाकर सिंह, डॉक्टर पुनीत कुमार सिंह, सुधाकर सिंह जो रामगढ़ से विधायक हैं और इंजीनियर अजित कुमार सिंह. अजीत सिंह तब चर्चा में आए थे, जब उन्होंने अंर्तजातीय विवाह किया था. जगदानंद सिंह ने अपने बड़े भाई और समाजवादी नेता सच्चिदानंद सिंह के खिलाफ चुनाव लड़कर ही राजनीति में अपनी पहचान बनाई थी. सच्चिदानंद सिंह उस समय के प्रभावशाली नेताओं में से एक थे.

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