प्रभाष चंद्रा , सुपौल
ये तस्वीर आधुनिक भारत के छातापूर थाना क्षेत्र के लालपुर गांव की है जहां ना तो सम्प्रदायवाद है ना धर्म बाद आपसी सौहार्द की अद्भुत मिशाल पेश करती ये तस्वीर । उन लोगों के लिए एक सीख है और सबक भी जो इंसान को इंसान से दूर करने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ा है । मुहर्रम में ऐसी ही एक बानगी पेश कर रही है छातापूर के लालपूर गांव में ।
ढोल नगाड़े की थाप पर हाय हुसैन हाय हुसैन के नारों से गूंजता मुहर्रम के तजिया के साथ जंगीयों का जुलूस एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे पर जाती है। मुहर्रम में मुस्लिम समुदाय के लोग लाठी भाले और तलवार से करतब दिखा रहे हैं पर जिसके दरवाजे पर जुलूस गया है उस घर की महिला थाली में दूब धान अगरबत्ती और पैसे लेकर ताजिया के पास आती है उनका इत्मीनान से पूजा करती है और चंद रकम ताजीया को संभाले व्यक्ति को देकर फिर अपने आंगन चली जाती है ।
ये कमोवेश गांव के हर हिन्दू परिवार की परम्परा है । गांव के लोग कहते हैं जब से होश संभाला है तबसे ये सिलसिला कायम है ।लगता ही नहीं की ये दूसरे सम्प्रदाय त्यौहार है । कुछ हिन्दू लोग तो जंगी में घुसकर लाठी भी भांजने लगते हैं ये अद्भुत और अविस्मरणीय परम्परा है जो आज के इस विकट दौर में भी इस गांव के लोग संजोए हुए है ।
लोगों को आज के बदलते हिन्दुस्तान से मलाल भी है एक व्यक्ति ने तो ये भी कह दिया कि पहले सुनते थे कि प्रजातंत्र मूर्खों का शाशन है पर अब लगता है कि समय बदल गया है। अब प्रजातंत्र धूर्तों का शासन हो गया है इस वाक्य के पीछे छुपा हुआ कुछ तर्क भी दिया गया कहा कि पहले आपसी सौहार्द था इतनी जाति भेद नहीं थी ना ही सम्प्रदायबाद था लोग एक दूसरे के सारे कार्यो और पर्व त्यौहार में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते थे पर राजनीतिक कारणोंों से गलत दिशा में चले जाने के कारण आज वोट के कारण समाज जाति धर्म सम्प्रदाय में दूरियां बढा दी गयी है।
गांव के शक्ति नाथ झा , विनोद झा , राजेन्द्र झा और सरोजिनी देवी ने बताया कि इंसानों से इंसान कि दूरिया इस कदर बढ़ा दी गयी है कि लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो गये हैं । बावजूद उनके गांव में दशकों से इस परम्परा को कायम रखा है खास कर मुहर्रम में जब ताजीया उनके दरवाजे पर आता है तो घर की महिलाएं विधिवत उसकी पूजा करते हैं ।