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एक्सीडेंट से लगे गंभीर चोट, करंट या आग से झुलसने पर गोल्डन आवर अहमः डॉक्टर अभिनव आनंद

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पटना,: प्रभात मेमोरियल हीरामती हॉस्पिटल ट्रॉमा सर्जन डॉ. अभिनव आनंद ने बताया कि एक्सीडेंट में गोल्डन ऑवर क्या मायने रखता है? एक्सीडेंट जैसे रेलवे ट्रैक इंजरी, बिजली का आघात, जलना, गोली लगना, चाकू लगना, इंटरपर्सनल वायलेंस, छत से गिरना यानी चोट से घायल होना। ऐसे मरीज़ को ट्रॉमा सर्जन अच्छे से हैंडल कर सकते हैं।

इन हादसों के बाद घायलों को अगर समय रहते अस्पताल पहुंचा दिया जाए तो ना सिर्फ उसकी जान बच सकती है बल्कि उन्हें जीवन भर अपंग होने से भी बचाया जा सकता है। ट्रॉमा के मामलों में गोल्डन ऑवर काफी महत्वपूर्ण होते हैं। साथ ही ये भी काफी महत्वपूर्ण होता है कि जब उपर लिखे किसी कारण से को व्यक्ति घायल होता है तो सबसे महत्वपूर्ण होता है कि समय रहते जितनी जल्दी हो सके उसे किस डॉक्टर के पास या किस अस्पताल ले जाया जाए जहां उसका बेहतर इलाज हो सके।

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डॉ. अभिनव आनंद, प्रभात मेमोरियल हीरामती हॉस्पिटल ने बताया कि हादसे के बाद का करीब एक घंटा बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। अगर इस बीच घायल को शीघ्रता से अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जित और ट्रॉमा सर्जन की उपलब्धता वाले अस्पताल पहुंचा दिया जाता है तो ना सिर्फ घायल की जान बच सकती है बल्कि उसके अंग को भी बचाया जा सकता है। दुर्घटना के बाद का यही एक घंटा गोल्डन ऑवर कहलाता है।

डॉक्टर अभिनव, प्रभात मेमोरियल हीरामती हॉस्पिटल के अनुसार साधारण लोगों की समझ में जो बातें आ सके अगर उसके अनुरूप बात करें तो ट्रॉमा में सबसे जरूरत की चीज इमीडिएट एक्शन यानि त्वरित कार्रवाही होती है। उनका कहना है कि ट्रामा सर्जन का काम बिल्कुल इमरजेंसी का होता है। ट्रॉमा सर्जन को इसके लिए इक्विप्ड बनाया गया है कि चोट की गंभीरता देखते हुए हम क्या करें? सिर में भी चोट हो सकती है, पांव में भी हो सकता है। जिसे मल्टीपल चोट कहते हैं। अगर आप ट्रॉमा को बीमारी समझेंगे तब आप समझेंगे कि समय रहते तुरंत इलाज होना कितना जरूरी है। कुछ चोटें जो गंभीर होती हैं मगर नजर से देखकर समझ पाना मुमकिन नहीं होता, जैसे कि टूटा हुआ पैर सभी को दिख जाता है मगर पेट, छाती या फिर दिमाग पर लगा अंदरूनी चोट नजर नहीं आकर भी जान ले लेता है। डॉक्टर प्रभात मेमोरियल हीरामती हॉस्पिटल, इमरजेंसी और ट्रॉमा के लिए पूरी तरह से सक्षम है। यहां आपातकाल के लिए सारी व्यवस्था है जिससे मरीज की जान के साथ-साथ अगर जरूरत पड़े तो उसके अंग भी बचाए जा सकते हैं। बस गोल्डन ऑवर में मरीज अस्पताल पहुंचा दिया जाए तो। यहां किसी भी तरह के इमरजेंसी केस को हैंडल करने की व्यवस्था है।

शरीर के किसी भी अंग की नस में चोट हो सकती है, जैसे- सिर, पांव, छाती इत्यादि, इसके लिए एक मरीज को अलग-अलग विशेषज्ञ सर्जन द्वारा इलाज कराया जाएगा पर एक ट्रॉमा सर्जन त्वरित जान बचाने के लिए इन सारे अंगों की नसों की चिकित्सा या शल्य चिकित्सा कर सकता है और इस मरीज को संभाल सकता है। यहां तक कि ट्रॉमा सर्जन खुद अल्ट्रॉसाउंड भी कर सकता है ताकि समय की बचत हो सके। अगर ट्रॉमा को एक बीमारी मान लिया जाए तो जो डॉक्टर इसका इलाज कर सकता है वो नाम आएगा ट्रॉमा सर्जन का। डॉ. अभिनव आनंद, प्रभात मेमोरियल हीरामती हॉस्पिटल ने ये सारी बातें बताई।

वहीं उन्होंने ये भी कहा कि अगर किसी से साथ कोई दुर्घटना घट जाए तो इसमें दो चीजें अहम होती हैं। सबसे पहला यह कि हम किसके पास जाएं? इसके लिए ट्रॉमा सर्जन विकल्प है। सिर में भी चोट हो, वह भी देख सकते हैं सीने में चोट हो, वह भी देख सकते हैं। चोट से उत्पन्न कोई भी चीज है उसके लिए तो ट्रॉमा से बेहतर कोई इलाज नहीं कर सकता। हमें पता होता है कि किन चीजों का ध्यान सबसे पहले देना है और समय रहते इलाज होना चाहिए। फर्ज करिये एक हॉस्पिटल है जिसमें न्यूरो, ऑर्थो और वैस्कुलर सर्जन सब है। अगर एक इंसान को चोट लगती है। इन सभी लोगों को उसे देखना होगा या देखेंगे। और उस मरीज का इलाज हो पाएगा। आज भी ऐसा चल रहा है। मगर एक साथ इन सभी डॉक्टरों को उपलब्ध कराने में समय लग जाता है जिससे घायल की जान जा सकती है। लेकिन सातों के ट्रॉमा को अगर निकाल दिया जाए उससे जो एक इंसान बनता है वह ट्रॉमा स्पेशलिस्ट बनता है। एक ट्रॉमा सर्जन एक न्यूरो सर्जन नहीं है ना ही आर्थोपेडिक सर्जन है। लेकिन ट्रॉमेटिक न्यूरो को हैंडल कर सकता है। ट्रॉमा में यही समझाया गया है। इसमें अलग-अलग चीजों के एक्सपर्ट डॉक्टर मरीज के विभिन्न अंगों पर ध्यान देंगे और उसे जोड़ेंगे। मगर ट्रॉमा सर्जन वो सारे काम कर सकता है जिसे कई डॉक्टर मिलकर करेंगे। हां बाद में फिर जिस विशेषज्ञ की जरूरत हो उससे उसका इलाज चलेगा। मगर शुरूआत में जान कैसे बचाई जाए ये ट्रॉमा सर्जन बेहतर कर सकता है। और दूसरा कि कौन अस्पताल ऐसा है जो इमरजेंसी में ट्रॉमा सर्जन और ट्रॉमा के लिए एक्विप्ट है, ये जरूर देखें तभी मरीज वहां ले जाएं अगर को घायल है तो।

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